Uttar Pradesh News
मुंबई से नागपुर और अब यूपी के मुजफ्फरनगर तक, एक फिल्म ने छेड़ दी इतिहास की वो बहस, जो अब सड़कों पर तकरार बनकर उतर आई है। बता दें कि मराठा शासक संभाजी और मुगल बादशाह औरंगजेब पर बनी फिल्म छावा के बाद अब समाज दो हिस्सों में बंटता नजर आ रहा है।
फिल्म की रिलीज के बाद औरंगजेब की कब्र को तोड़ने की मांग तेज हुई, और सोमवार रात नागपुर में इसी विवाद को लेकर दो समुदाय आमने-सामने आ गए। झड़प के बाद हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं। वहीं, इस विवाद की आग अब उत्तर प्रदेश तक पहुँच चुकी है।
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मुजफ्फरनगर में उबाल – 5 बीघा ज़मीन और 11 लाख का ऐलान!
सूत्रों के मुताबिक 18 मार्च को मुजफ्फरनगर में शिवसेना से जुड़े हिंदूवादी संगठन ने नागपुर हिंसा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। लेकिन ये प्रदर्शन जल्द ही एक भड़काऊ रूप ले बैठा। औरंगजेब की कब्र तोड़ने वालों को 5 बीघा जमीन और 11 लाख रुपये देने का ऐलान कर दिया गया।
इतना ही नहीं, मुस्लिम समुदाय के खिलाफ आपत्तिजनक नारे लगाए गए, जिससे माहौल और गरमा गया। साथ ही, नागपुर कांड के दोषियों की नागरिकता खत्म कर उन्हें पाकिस्तान-बांग्लादेश भेजने की मांग की गई।
प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री के नाम जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपते हुए मांग की कि औरंगजेब समेत सभी विदेशी शासकों की कब्रें मिटा दी जाएं और उनके नाम से जुड़ी सड़कें, स्मारकों के नाम बदले जाएं।
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सियासी तूल और कानून व्यवस्था पर सवाल
इस विवाद ने सिर्फ धार्मिक ही नहीं, राजनीतिक रंग भी ले लिया है। बीजेपी और कुछ हिंदूवादी संगठनों के नेता लगातार बयानबाजी कर रहे हैं, जिससे देश में नफरत की लहर और तेज हो रही है। सवाल ये भी उठ रहे हैं कि क्या कब्रें और स्मारक तोड़ने से इतिहास बदल जाएगा या समाज का तानाबाना कमजोर हो जाएगा?
कानून विशेषज्ञों का कहना है कि सार्वजनिक रूप से कब्र तोड़ने की बात करना और उकसाना भारतीय दंड संहिता (IPC) की कई धाराओं के तहत गंभीर अपराध है।
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