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Tuesday, June 17, 2025

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Maharashtra News : महिला दिवस पर एनसीपी नेता रोहिणी खडसे की अनोखी मांग – ‘महिलाओं को एक मर्डर की छूट दी जाए’

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मुंबई। 8 मार्च, यानि अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस, देशभर में महिलाओं की उपलब्धियों का जश्न मनाया जा रहा था, लेकिन इसी बीच राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के शरद पवार गुट की महिला शाखा की अध्यक्ष, रोहिणी खडसे ने एक चौंकाने वाला बयान दिया। उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने मांग की कि महिलाओं को एक हत्या करने की छूट दी जाए। यह मांग किसी मजाक या सनसनीखेज बयान से ज्यादा, एक गहरी चिंता और आक्रोश की अभिव्यक्ति थी।

 

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हाल ही में मुंबई में 12 साल की एक बच्ची के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म की खबर ने पूरे देश की आत्मा तक को झकझोर कर रख दिया था। लेकिन यह कोई पहली बार नहीं हुआ था। हर दिन अखबारों की सुर्खियां बलात्कार, घरेलू हिंसा, एसिड अटैक और महिलाओं के खिलाफ अन्य जघन्य अपराधों से भरी रहती हैं। और महिलाएं सिर्फ न्याय की गुहार लगाती हैं,

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लेकिन कभी जांच धीमी पड़ जाती है, तो कभी अपराधी राजनीतिक रसूख के कारण बच निकलते हैं। तो वहीं कभी न्याय मिलने में सालों लग जाते हैं, लेकिन पीड़िता और उसके परिवार की तकलीफ कभी खत्म नहीं होती। यही वजह थी कि रोहिणी खडसे का धैर्य जवाब दे गया। उन्होंने महसूस किया कि अगर कानून महिलाओं की रक्षा नहीं कर सकता, तो उन्हें खुद की सुरक्षा का अधिकार मिलना चाहिए।

खडसे का गुस्सा – महिलाओं को आत्मरक्षा का हक क्यों नहीं?

अपने पत्र में रोहिणी खडसे ने लिखा, “देश में महिलाओं की सुरक्षा मजाक बन गई है। बलात्कारी बेखौफ घूमते हैं, और पीड़िता को ही समाज में तिरस्कार सहना पड़ता है। अगर कानून हमें न्याय नहीं दे सकता, तो हमें खुद न्याय लेने की अनुमति दी जानी चाहिए। कम से कम, एक अपराधी को सबक सिखाने का हक तो हमें मिलना ही चाहिए।” उनका इशारा साफ था कि महिलाओं को आत्मरक्षा का अधिकार दिया जाए, और अगर कोई पुरुष उन्हें प्रताड़ित करता है, तो उसे मारने का छूट कानून के तरफ से दिया जाये।

https://x.com/Rohini_khadse/status/1898207510227558827

 

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क्या यह एक सचमुच की मांग थी या प्रतीकात्मक विरोध?

वहीं रोहिणी खडसे का यह बयान कोई कानूनी मांग नहीं थी, बल्कि एक प्रतीकात्मक विरोध था। यह एक तरीका था सरकार और समाज का ध्यान खींचने का – एक ऐसी स्थिति की कल्पना कराकर, जहां महिलाएं खुद न्याय करने को मजबूर हो जाएं। उनकी इस बात को कुछ लोगों ने गंभीरता से लिया, तो कुछ ने इसे पब्लिसिटी स्टंट कहा। लेकिन एक बात तय थी – इस बयान ने बहस छेड़ दी थी।

सवाल जो इस बयान से उठते हैं
  • क्या सच में हमारी कानून व्यवस्था इतनी कमजोर हो गई है कि महिलाओं को अपनी सुरक्षा खुद करनी पड़े?
  • क्या महिलाओं को आत्मरक्षा के लिए अधिक कानूनी अधिकार दिए जाने चाहिए?
  • अगर ऐसा होता है, तो क्या इसका दुरुपयोग नहीं होगा?
लोगों की मिली-जुली प्रतिक्रियाएं
  • रोहिणी खडसे की इस मांग के बाद सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई।
  • कुछ लोगों ने इसे महिलाओं के गुस्से की सही अभिव्यक्ति बताया।
  • कई पुरुषों ने इसे खतरनाक सोच करार दिया, यह तर्क देते हुए कि अगर ऐसा हुआ, तो समाज में हिंसा बढ़ जाएगी।
  • वहीं, कुछ ने सरकार से मांग की कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए सख्त कानून बनाए जाएं, जिससे ऐसी नौबत ही न आए।

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हालांकि, रोहिणी खडसे की यह मांग कानूनी रूप से मुमकिन नहीं है, लेकिन इससे एक अहम मुद्दा उठ खड़ा हुआ है – महिलाओं की सुरक्षा और न्याय प्रणाली की विफलता।

और शायद इस मांग को पूरा न किया जाए, लेकिन यह सरकार और समाज के लिए एक चेतावनी जरूर है – अगर महिलाओं को सुरक्षा नहीं मिली, तो वे खुद अपने हक के लिए लड़ने को मजबूर हो जाएंगी।

अब देखना यह है कि इस बयान का असर सरकार की नीतियों पर पड़ता है या नहीं। क्या सच में महिलाओं के लिए सुरक्षा के ठोस कदम उठाए जाएंगे? या फिर यह भी सिर्फ एक बहस बनकर रह जाएगी?

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