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Saturday, October 18, 2025

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Burhanpur News : असीरगढ़ किले में खजाने की खोज, ‘छावा’ फिल्म से फैली अफवाह, ग्रामीणों ने रातों-रात खोद डाली जमीन

Burhanpur News

  • स्थान: असीरगढ़ किला, बुरहानपुर, मध्य प्रदेश
  • घटना: सैकड़ों ग्रामीणों ने मुगलकालीन खजाने की तलाश में किले की खुदाई कर डाली

बुरहानपुर। मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले में स्थित असीरगढ़ किला एक ऐतिहासिक धरोहर है, जो सदियों से अपने रहस्यमय किस्सों और गाथाओं के लिए जाना जाता है। यह किला कभी फारूकी राजाओं के अधीन था, लेकिन 1601 में अकबर ने इसे जीत लिया था और इसके बाद यह मुगल साम्राज्य का हिस्सा बना रहा।

लेकिन हाल ही में इस किले में कुछ ऐसा हुआ, जिसने प्रशासन और स्थानीय लोगों को चौंका दिया। ‘छावा’ फिल्म देखने के बाद सैकड़ों ग्रामीणों ने यह मान लिया कि किले के नीचे मुगलों द्वारा छिपाया गया खजाना दफन है। इस विश्वास के साथ वे रातोंरात किले की खुदाई करने पहुंच गए, जिससे यह घटना सुर्खियों में आ गई।

कैसे शुरू हुई यह अफवाह?

कुछ दिनों पहले ‘छावा’ फिल्म रिलीज हुई, जो मराठा योद्धा छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन और मुगलों से उनके संघर्ष पर आधारित है। इस फिल्म में दिखाए गए दृश्यों ने ग्रामीणों के मन में यह धारणा बना दी कि मुगलों ने कई स्थानों पर अपने खजाने को छिपाकर रखा था।

फिल्म से प्रेरित होकर, कुछ स्थानीय लोगों ने आपस में चर्चा शुरू कर दी कि असीरगढ़ किला भी ऐसा ही एक स्थान हो सकता है, जहां मुगलों ने सोने-चांदी के सिक्के छिपाए होंगे। यह चर्चा धीरे-धीरे पूरे इलाके में फैल गई और देखते ही देखते यह अफवाह का रूप ले चुकी थी। सोशल मीडिया और व्हाट्सएप ग्रुप्स ने आग में घी डालने का काम किया। कई लोगों ने यह दावा करना शुरू कर दिया कि किले के आसपास खुदाई करने पर सोने-चांदी के सिक्के और अन्य कीमती धातुएं मिल सकती हैं।

रातोंरात खजाने की खोज शुरू

जैसे ही यह खबर तेजी से फैली, आसपास के गांवों के सैकड़ों ग्रामीण कुदाल, फावड़े और अन्य औजार लेकर किले की ओर दौड़ पड़े। आधी रात को ही लोग असीरगढ़ किले के पास इकट्ठा हुए और बिना किसी सरकारी अनुमति के खुदाई शुरू कर दी।

कुछ ग्रामीणों का कहना था कि उनके पूर्वजों ने भी इस तरह की कहानियां सुनाई थीं कि मुगल इस किले में अपार धन-दौलत छिपाकर चले गए थे। हालांकि, इन कहानियों का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, लेकिन गरीबी और आर्थिक तंगी से जूझ रहे लोगों ने इसे सच मान लिया और सोने के सिक्कों की खोज में जुट गए।

किले को नुकसान और प्रशासन की कार्रवाई

ग्रामीणों ने बिना सोचे-समझे किले के आसपास की जमीन को बड़े स्तर पर खोदना शुरू कर दिया। इससे न केवल किले को नुकसान पहुंचने का खतरा पैदा हो गया, बल्कि पुरातत्व विभाग की संपत्ति को भी क्षति पहुंची। जब प्रशासन को इस बात की जानकारी मिली, तो पुलिस बल तुरंत मौके पर पहुंचा और ग्रामीणों को खदेड़ दिया।

पुलिस ने लोगों को समझाने की कोशिश की कि यह सिर्फ एक अफवाह है, लेकिन कई लोग मानने को तैयार नहीं थे। कुछ ग्रामीणों का तो यह भी कहना था कि यदि खुदाई की अनुमति दी जाए, तो किले में खजाना मिलने की पूरी संभावना है। हालांकि, पुलिस ने उन्हें चेतावनी देकर मौके से हटा दिया और आगे इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए किले की सुरक्षा कड़ी कर दी गई। बता दें कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब किसी ऐतिहासिक स्थल पर खजाने की अफवाह के चलते लोगों ने इस तरह की खुदाई शुरू कर दी हो। भारत में इससे पहले भी कई बार ऐसे किस्से सामने आ चुके हैं, जहां लोग किवदंतियों और अफवाहों के आधार पर खजाने की तलाश में जुट गए।

इस घटना के पीछे कई कारण छिपे हैं
  • लोगों की अंधविश्वास और अफवाहों पर तेजी से विश्वास करने की प्रवृत्ति।
  • आर्थिक तंगी और बेरोजगारी, जिसके कारण लोग बिना किसी ऐतिहासिक प्रमाण के भी खजाने की तलाश में जुट जाते हैं।
  • फिल्मों और सोशल मीडिया के प्रभाव, जिनसे लोग कल्पना और वास्तविकता में फर्क नहीं कर पाते।
क्या सबक लिया जा सकता है?

यह घटना एक बार फिर साबित करती है कि सूचना और जागरूकता की कमी किस तरह समाज में अफवाहों को जन्म देती है। सिर्फ एक फिल्म देखने के बाद लोग इतनी बड़ी संख्या में खजाने की तलाश में निकल पड़े, जिससे ऐतिहासिक धरोहर को भी नुकसान पहुंच सकता था।

  • सरकार और प्रशासन को चाहिए कि वे ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता अभियान चलाएं, ताकि लोग इतिहास और अफवाहों के बीच फर्क समझ सकें।
  • ऐतिहासिक स्थलों की सुरक्षा के लिए कठोर नियम लागू किए जाएं, ताकि इस तरह की घटनाएं दोबारा न हों।
  • सोशल मीडिया पर फैलने वाली गलत जानकारी को नियंत्रित करने के लिए कदम उठाए जाएं, ताकि भविष्य में इस तरह की अफवाहें न फैलें।

असीरगढ़ किले की यह घटना यह बताती है कि कैसे फिल्मों और अफवाहों का असर लोगों की मानसिकता पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। रातोंरात खजाने की तलाश में जुटे ग्रामीणों ने यह साबित कर दिया कि जब गरीबी, अंधविश्वास और गलत सूचनाओं का मेल होता है, तो किसी भी ऐतिहासिक स्थल को खतरा हो सकता है।

अब सवाल यह उठता है कि क्या वाकई भविष्य में ऐसे अंधविश्वासों से बचा जा सकता है? या फिर यह सिलसिला आगे भी चलता रहेगा? प्रशासन को अब इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।

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