Woman gives birth on the way to hospital: पैदल अस्पताल जा रही गर्भवती महिला का रास्ते में प्रसव, नवजात को लेकर 15 किमी बाइक से पहुंची अस्पताल

Woman gives birth on the way to hospital: पैदल अस्पताल जा रही गर्भवती महिला का रास्ते में प्रसव, नवजात को लेकर 15 किमी बाइक से पहुंची अस्पताल

 Woman gives birth on the way to hospital: पैदल अस्पताल जा रही गर्भवती महिला का रास्ते में प्रसव, नवजात को लेकर 15 किमी बाइक से पहुंची अस्पताल
Woman gives birth on the way to hospital: पैदल अस्पताल जा रही गर्भवती महिला का रास्ते में प्रसव, नवजात को लेकर 15 किमी बाइक से पहुंची अस्पताल

Woman gives birth on the way to hospital: बलरामपुर, छत्तीसगढ़ | 5 अगस्त 2025| छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले से एक दिल दहला देने वाली तस्वीर सामने आई है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली और बुनियादी सुविधाओं की कमी को उजागर करती है। वाड्रफनगर विकासखंड के सोनहत गांव की एक गर्भवती महिला ने अस्पताल पहुंचने से पहले रास्ते में ही बच्चे को जन्म दे दिया।

नदी पार कर पैदल चल रही थी गर्भवती महिला

Woman gives birth on the way to hospital: जानकारी के मुताबिक, महिला पंडो जनजाति से है और जब उसे प्रसव पीड़ा शुरू हुई तो परिवार के सदस्य उसे अस्पताल ले जाने निकले। लेकिन गांव तक एंबुलेंस नहीं पहुंच पाती, क्योंकि वहां न तो पक्की सड़क है और न ही नदी-नालों पर पुल। बरसात में हालात और भी बदतर हो जाते हैं।

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Woman gives birth on the way to hospital: बता दें कि गर्भवती महिला को पैदल नदी पार कर अस्पताल की ओर ले जाया जा रहा था, तभी रास्ते में ही उसका प्रसव हो गया। इसके बावजूद परिजनों ने हार नहीं मानी और नवजात शिशु के साथ प्रसूता को एक बाइक पर बैठाकर 15 किलोमीटर दूर रघुनाथनगर सिविल अस्पताल लेकर पहुंचे। फिलहाल महिला और नवजात को सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जहां दोनों की स्थिति स्थिर बताई जा रही है।

बुनियादी सुविधाओं का अभाव, सवालों के घेरे में प्रशासन

Woman gives birth on the way to hospital: इस घटना ने एक बार फिर से बलरामपुर जिले की दुर्गम क्षेत्रों में स्वास्थ्य और परिवहन सुविधाओं की सच्चाई को उजागर कर दिया है। सोनहत जैसे गांवों में आज भी एंबुलेंस जैसी आपातकालीन सेवाएं नहीं पहुंच पातीं, क्योंकि वहाँ तक पक्की सड़क और पुल जैसी बुनियादी संरचनाएं ही मौजूद नहीं हैं। यह घटना न सिर्फ सरकारी योजनाओं की पहुंच पर सवाल खड़े करती है, बल्कि यह भी सोचने पर मजबूर करती है कि क्या 21वीं सदी में भी एक महिला को अपने बच्चे को जन्म देने के लिए नदी पार करनी पड़नी चाहिए?

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